अक्सर, मन में उठती बातें,
शब्दों को न पाकर,मन में ही सिमट जाती हैं।
जब भी खुलता है, मन का दरवाज़ा,
बीते वक्त की गुल्लक से निकल आती हैं।
गुजरते वक्त में भी कहीं ठहरी -सी,
अपने होने का अहसास लिए,
मौन से भी संवाद करती हैं।
फ़र्क नहीं पड़ता , कि कोई सुने या न सुने,
फ़र्क पड़ता है, जब अहसासों को शब्द नहीं मिलते।
क्योंकि किरदारों के रहते, कहानी खत्म नहीं होती।
संवाद चलते रहते हैं ...!
प्रत्यक्ष या परोक्ष..!
©kdramalogy
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