क्या मेरा जुर्म है बता दे ना फ़िर मु | हिंदी Shayari

"क्या मेरा जुर्म है बता दे ना फ़िर मुझे चाहे जो सज़ा देना शह्र का आखरी चराग़ हूं मैं ऐ हवाओं मुझे बुझा देना बाप रोया जब उस के बच्चे ने कहा बाबा खिलौना ला देना मां मुझे ख़्वाब अच्छे आएंगे अपनी आगोश में सुला दे ना शर्म से मर गया जो उर्यां शख्स तुम उसे इक कफ़न उढ़ा देना कहा रब ने, किसी के एहसां का सिर्फ एहसान से सिला देना तुझ में इक ये भी खासियत है दोस्त तुझ से सीखे कोई दगा देना ज़िंदगी बस यही तो है ' मानी ' ले के हाथों में खाक उड़ा देना . ©Mustafa Dhorajiwala 'Maani'"

 क्या   मेरा    जुर्म   है   बता   दे  ना
फ़िर   मुझे   चाहे   जो   सज़ा  देना

शह्र    का   आखरी   चराग़   हूं   मैं
ऐ     हवाओं     मुझे     बुझा    देना

बाप   रोया   जब  उस  के  बच्चे  ने
कहा    बाबा    खिलौना    ला   देना

मां    मुझे    ख़्वाब    अच्छे   आएंगे
अपनी   आगोश   में   सुला   दे   ना

शर्म   से  मर  गया  जो  उर्यां  शख्स
तुम   उसे   इक   कफ़न   उढ़ा   देना

कहा  रब  ने,  किसी  के  एहसां  का
सिर्फ    एहसान    से    सिला    देना

तुझ में इक ये भी खासियत है दोस्त
तुझ    से   सीखे   कोई   दगा   देना

ज़िंदगी    बस   यही  तो  है  ' मानी '
ले   के   हाथों   में  खाक  उड़ा  देना

.

©Mustafa Dhorajiwala 'Maani'

क्या मेरा जुर्म है बता दे ना फ़िर मुझे चाहे जो सज़ा देना शह्र का आखरी चराग़ हूं मैं ऐ हवाओं मुझे बुझा देना बाप रोया जब उस के बच्चे ने कहा बाबा खिलौना ला देना मां मुझे ख़्वाब अच्छे आएंगे अपनी आगोश में सुला दे ना शर्म से मर गया जो उर्यां शख्स तुम उसे इक कफ़न उढ़ा देना कहा रब ने, किसी के एहसां का सिर्फ एहसान से सिला देना तुझ में इक ये भी खासियत है दोस्त तुझ से सीखे कोई दगा देना ज़िंदगी बस यही तो है ' मानी ' ले के हाथों में खाक उड़ा देना . ©Mustafa Dhorajiwala 'Maani'

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