कभी कभी ये दिल भी तय करता है दौर ख़ामोशी का लाख म | हिंदी शायरी

"कभी कभी ये दिल भी तय करता है दौर ख़ामोशी का लाख मन हो कुछ कहने का लेकिन रुक सा जाता है कारवां लफ्ज़ों का कभी होता है इम्तिहान मेरी शिद्दत का... तो कभी होता है मौसम तन्हाई का... दिल हो जाता है ख़ुद से ही अजनबी सा बहलाना हो जाता है दिल को फ़िर नामुमकिन सा कर बैठता है जब भी जिद्द तेरी दिल मेरा... ©तृप्ति"

 कभी कभी ये दिल भी तय 
करता है दौर ख़ामोशी का
लाख मन हो कुछ कहने का
लेकिन रुक सा जाता है 
कारवां लफ्ज़ों का
कभी होता है इम्तिहान 
मेरी शिद्दत का... 
तो कभी होता है 
मौसम तन्हाई का... 
दिल हो जाता है 
ख़ुद से ही अजनबी सा
बहलाना हो जाता है 
दिल को फ़िर नामुमकिन सा
कर बैठता है जब भी जिद्द तेरी दिल मेरा...

©तृप्ति

कभी कभी ये दिल भी तय करता है दौर ख़ामोशी का लाख मन हो कुछ कहने का लेकिन रुक सा जाता है कारवां लफ्ज़ों का कभी होता है इम्तिहान मेरी शिद्दत का... तो कभी होता है मौसम तन्हाई का... दिल हो जाता है ख़ुद से ही अजनबी सा बहलाना हो जाता है दिल को फ़िर नामुमकिन सा कर बैठता है जब भी जिद्द तेरी दिल मेरा... ©तृप्ति

#जिद्द

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