#FourLinePoetry यादों की खुशबू आज भी आती है मुझे उस आंगन से
जानती हूॅं की
अब साड़ी नहीं सुखती उनकी उस आंगन में
लेकिन
गुजरें लम्हों की खटी- मीठी यादें बिखरी हैं
उन कमरों में जहां कभी घंटो बातें करती थी मैं आपसे
अब उन्ही यादों के साए में मुझे रहना है
और
अपने कर्तव्य का निर्वाह करना है
तो क्यों ना आऊं
मैं उस आंगन में जहाॅं मैं अंकुरित हुई थी
खिली थी मैं आपकी हंसी से
आपके ही आंचल की छांव में उस आंगन में पली थी
माना कि मेरी पलके भीगेगी यादों की ज्वाला में
पर यकीन है मुझे आपके आंगन की खुशबू
मुझे हमेशा की तरह
संभाल लेंगी....
©vidushi MISHRA
मामी