मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये
सितम इतने करो मुझ पर के मेरा दम निकल जाये
ज़बां पर इस लिए पहरा लबों पर इस लिए ताले
जो सच्ची बात है ऐसा न हो मुंह से निकल जाए
मैं तुम से बाख़बर और तुम रहे हो बेख़बर मुझ से
मेरी क़िस्मत में ही कब हैं तुम्हारे प्यार के साये
बसा है जब से इक इन्सां का चेहरा मेरी आँखों में
वह मुझ से दूर हो फिर भी मुझे हर पल नज़र आये
मेरा मायूस दिल यूं तो "हंस " ख़ामोश रहता है
धड़कता है मगर उस पल किसी की याद जब आये
©Hans gunjal