सुनो, ये बात है कुछ वर्ष पुरानी,
बेहद दर्द भरी है आज़ादी के दीवानों की कहानी,
लड़ते रहे वो आखिरी दम तक,
लेकिन कभी उन्होंने हार न मानी|
परवाह नहीं थी रोटी की
और न ही घूंट भर पानी की,
चीर कर अपने हौसलों से है मुश्किल का सीना
बस बढ़ते गए आज़ादी की मंजिल की ओर,
न हिसाब है, न कीमत है उनके कुर्बानियों की
बस संभल सकें हम आज़ादी को सही सलामत
यही कीमत हो सकती है उनके मेहरबानियों की|
इंसानों के बंधन से बेशक हम आज़ाद हुए,
लेकिन अभी ये अधूरी आज़ादी है,
ग़र आज़ाद कर लिए खुद को हमने ,
अपने स्वं के अंदर के कुसंस्कारों से
सही मायने में वही पूर्ण आज़ादी है|
आज १५ अगस्त के इस पवन अवसर पर
आओ मिलकर जश्न मनाएं,
लेकिन ध्यान रहे महत्व है जो आज़ादी का
उसको कभी हम भूल न जाएँ……!
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©Rishabh
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