मैंने सोचा
फ़िर से क़लाम कर लूं क्या
यू भी मुमकिन
खुद ही जीना हराम कर लूं क्या
मैं अब
इंतेज़ार में ग़ुम हु
कभी आओ
तो खुद ब खुद आना
मुझ को हासिल है
कमाल का सबर
बेबाक़
कोई शायद के कोई काश नहीं
मैं ग़र
मुक़म्मल क़रीब न रह सकू
तो फ़िर
ज़रा भी पास नहीं...
©ashita pandey बेबाक़
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