जिस्म अंगड़ाई ले रही है प्यस अंधेरे और नजरों के ल | हिंदी शायरी

"जिस्म अंगड़ाई ले रही है प्यस अंधेरे और नजरों के लिए घुम रही है .... इश्क़ छोड़ कर खुद अकेले किसी तलब मैं भटक रही है .... कोई नजर मिल जाए जो प्यासा हो और बेताब हो सब कुछ भुलाने के लिए ..... तो मिल कर गम भूल आएंगे कभी हम उनके सासों में उतरेगें और कभी वो मेरे दिल में उतरेगें कभी हम रूह होंगे कभी वो आग होंगे कभी हम नशा होंगे कभी वो शराब होंगे जब दो दरीया एक होंगे तो कभी लहरों की बगावत होगी तो कभी मौसम में आग लगेगी ..,. जब दोनों गम भूल जाएंगे तो फिर नई जिंदगी की सुरूवात होगी ... ©Chaudhary Ashish"

 जिस्म अंगड़ाई ले रही है प्यस अंधेरे 
और नजरों के लिए घुम रही है  .... 
इश्क़ छोड़ कर खुद अकेले किसी 
तलब मैं भटक रही है .... 
कोई नजर मिल जाए जो प्यासा हो और बेताब हो सब कुछ भुलाने के लिए  ..... 
तो मिल कर गम भूल आएंगे कभी हम उनके सासों में उतरेगें और कभी वो मेरे दिल में उतरेगें कभी हम रूह होंगे कभी वो आग होंगे कभी हम नशा होंगे कभी वो शराब होंगे
जब दो दरीया एक होंगे तो कभी लहरों की बगावत होगी तो कभी मौसम में आग लगेगी  ..,. 
जब दोनों गम भूल जाएंगे तो फिर नई जिंदगी की सुरूवात होगी  ...

©Chaudhary Ashish

जिस्म अंगड़ाई ले रही है प्यस अंधेरे और नजरों के लिए घुम रही है .... इश्क़ छोड़ कर खुद अकेले किसी तलब मैं भटक रही है .... कोई नजर मिल जाए जो प्यासा हो और बेताब हो सब कुछ भुलाने के लिए ..... तो मिल कर गम भूल आएंगे कभी हम उनके सासों में उतरेगें और कभी वो मेरे दिल में उतरेगें कभी हम रूह होंगे कभी वो आग होंगे कभी हम नशा होंगे कभी वो शराब होंगे जब दो दरीया एक होंगे तो कभी लहरों की बगावत होगी तो कभी मौसम में आग लगेगी ..,. जब दोनों गम भूल जाएंगे तो फिर नई जिंदगी की सुरूवात होगी ... ©Chaudhary Ashish

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