व्योम है शान्त, यामिनी स्तब्ध। भस्म हों, जीव कलुष- | हिंदी कविता

"व्योम है शान्त, यामिनी स्तब्ध। भस्म हों, जीव कलुष-प्रारब्ध।। निशाकर रुचिर रूप है वक्र। काल का ये विचित्र है चक्र।। धरा की हरी दरी है घास। रजत चादर ऊपर अति खास।। देखते तारे अपलक नैन। भव्य हो रही, मौन यह रैन।। लगें भगजोगिनि-से नक्षत्र। खोजते निज प्रियतम सर्वत्र।। कुमुद विकसित होते सानन्द। भृंग का ध्वस्त हुआ आनन्द।। कमल के किसलय होते बन्द। कुमुदिनी का फीका मकरन्द।। उल्लसित हैं, उलूक द्रुमडाल। बजाते झींगुर हर्षित गाल।। मास फागुन का है नवबिन्दु। अष्टमी का अद्भुत यह इन्दु।। गगन में ध्रुव तारा है दूर। प्रफुल्लित है, मद में अतिचूर।। सरोवर में शशि का प्रतिबिम्ब। नृत्य करता ज्यौं आधा निम्ब।। लगे है जड़ा, नील जल-दण्ड। परशुधर का हो परशु प्रचण्ड।। :- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश"

 व्योम है शान्त, यामिनी स्तब्ध।
भस्म हों, जीव कलुष-प्रारब्ध।।
निशाकर रुचिर रूप है वक्र।
काल का ये विचित्र है चक्र।।
धरा की हरी दरी है घास।
रजत चादर ऊपर अति खास।।
देखते तारे अपलक नैन।
भव्य हो रही, मौन यह रैन।।
लगें भगजोगिनि-से नक्षत्र।
खोजते निज प्रियतम सर्वत्र।।
कुमुद विकसित होते सानन्द।
भृंग का ध्वस्त हुआ आनन्द।।
कमल के किसलय होते बन्द।
कुमुदिनी का फीका मकरन्द।।
उल्लसित हैं, उलूक द्रुमडाल।
बजाते झींगुर हर्षित गाल।।
मास फागुन का है नवबिन्दु।
अष्टमी का अद्भुत यह इन्दु।।
गगन में ध्रुव तारा है दूर।
प्रफुल्लित है, मद में अतिचूर।।
सरोवर में शशि का प्रतिबिम्ब।
नृत्य करता ज्यौं आधा निम्ब।।
लगे है जड़ा, नील जल-दण्ड।
परशुधर का हो परशु प्रचण्ड।।

:- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'

©गणेश

व्योम है शान्त, यामिनी स्तब्ध। भस्म हों, जीव कलुष-प्रारब्ध।। निशाकर रुचिर रूप है वक्र। काल का ये विचित्र है चक्र।। धरा की हरी दरी है घास। रजत चादर ऊपर अति खास।। देखते तारे अपलक नैन। भव्य हो रही, मौन यह रैन।। लगें भगजोगिनि-से नक्षत्र। खोजते निज प्रियतम सर्वत्र।। कुमुद विकसित होते सानन्द। भृंग का ध्वस्त हुआ आनन्द।। कमल के किसलय होते बन्द। कुमुदिनी का फीका मकरन्द।। उल्लसित हैं, उलूक द्रुमडाल। बजाते झींगुर हर्षित गाल।। मास फागुन का है नवबिन्दु। अष्टमी का अद्भुत यह इन्दु।। गगन में ध्रुव तारा है दूर। प्रफुल्लित है, मद में अतिचूर।। सरोवर में शशि का प्रतिबिम्ब। नृत्य करता ज्यौं आधा निम्ब।। लगे है जड़ा, नील जल-दण्ड। परशुधर का हो परशु प्रचण्ड।। :- ✍️ गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' ©गणेश

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