स्वाभिमान की जंग में बात ज़ब भी स्वाभिमान की आती है | हिंदी कविता

"स्वाभिमान की जंग में बात ज़ब भी स्वाभिमान की आती है हिम्मत तोड़ औरत को पछाड़ने आगे इक औरत ही जाने क्यों आती है / पुरुष को बना ढाल वो अपने स्वार्थ सिद्ध करेगी इस छल -कपट की जंग में औरत ही तो पल -पल मरेगी / सहती आयी जो वो जाने कब से उसे फिर ना जाने क्यों पीढ़ी दर पीढ़ी आगे करेगी तोड़ बेड़ियों के बंधन न आगे बड़ी है न बढ़ेगी खुद भी कष्ट सही औरत अत्याचार जाने क्यों औरों पे भी वह करेगी यह बना ली रस्म -प्रथा उसने जाने अब यह कब तक चलेगी / ©Ishu ❤"

 स्वाभिमान की जंग में बात
ज़ब भी स्वाभिमान की आती है
हिम्मत तोड़ औरत  को पछाड़ने
आगे इक औरत ही जाने क्यों आती है /

पुरुष को बना ढाल वो
अपने स्वार्थ सिद्ध करेगी
इस छल -कपट की जंग में
औरत ही तो पल -पल मरेगी /

सहती आयी जो वो जाने कब से
उसे फिर ना जाने क्यों
पीढ़ी दर पीढ़ी  आगे  करेगी
तोड़ बेड़ियों के बंधन न आगे बड़ी है न बढ़ेगी

खुद भी कष्ट सही औरत
अत्याचार जाने क्यों औरों पे भी वह करेगी
यह बना ली रस्म -प्रथा उसने
जाने अब  यह कब तक चलेगी /

©Ishu ❤

स्वाभिमान की जंग में बात ज़ब भी स्वाभिमान की आती है हिम्मत तोड़ औरत को पछाड़ने आगे इक औरत ही जाने क्यों आती है / पुरुष को बना ढाल वो अपने स्वार्थ सिद्ध करेगी इस छल -कपट की जंग में औरत ही तो पल -पल मरेगी / सहती आयी जो वो जाने कब से उसे फिर ना जाने क्यों पीढ़ी दर पीढ़ी आगे करेगी तोड़ बेड़ियों के बंधन न आगे बड़ी है न बढ़ेगी खुद भी कष्ट सही औरत अत्याचार जाने क्यों औरों पे भी वह करेगी यह बना ली रस्म -प्रथा उसने जाने अब यह कब तक चलेगी / ©Ishu ❤

#कड़वा सच
#findyourself

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