ऊंचाईयाँ-गहराईयाँ" कैसे कोई सोच लेता है उतनी गहर | हिंदी Poetry V

""ऊंचाईयाँ-गहराईयाँ" कैसे कोई सोच लेता है उतनी गहराई तक, जितनी कि ऊंचाई। कुछ तो बात है, उनके अनुमान में होती है सच्चाई। ऊंचाई तक पहुंचने के लिए गहराई का ज्ञान जरूरी है। चढ़कर उतरना भी होगा, ये अनुमान जरूरी है। ©@Vandana.Rawat"वन्दू" "

"ऊंचाईयाँ-गहराईयाँ" कैसे कोई सोच लेता है उतनी गहराई तक, जितनी कि ऊंचाई। कुछ तो बात है, उनके अनुमान में होती है सच्चाई। ऊंचाई तक पहुंचने के लिए गहराई का ज्ञान जरूरी है। चढ़कर उतरना भी होगा, ये अनुमान जरूरी है। ©@Vandana.Rawat"वन्दू"

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"ऊंचाईयाँ-गहराईयाँ"
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