दूर शहर का एक लड़का,
इक रोज शहर मेरे आया था
आया आकर यही बस गया,
और इसे भी अपना बनाया था
कच्ची उम्र मे एक रोज मुझसे,
एक रास्ते पर वो यूँ टकराया था
टकराकर ठहरे जो कुछ वक्त हम,
उस वक्त ने मुझे उसका बनाया था
गिरते वक्त देकर सहारा अपना,
उसने मुझे हर बार सम्भाला था
मैंने भी तो हर कदम पर उसका,
हर हाल में हमेशा साथ निभाया था
प्यार से समझा हर बात उसने,
मुझे प्यार का मतलब समझाया था
और बनकर प्यार फिर उसने मेरा,
एक दिन मुझको ही ठुकराया था
दूर शहर का एक लड़का,
इक रोज शहर मेरे आया था...❤
©Ka'jal' Agrawal✍
"दूर शहर का एक लड़का" by Ka'jal' Agrawal || the_creative_poetess || thoughts_shayri_story
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