Alone माटी की काया में तूने क्यों मगरूरियत को बोया है......
बावले,बबूल की खेती में सदा बबूल ही
होया है.....
हजार मर्तबा कहा देख श्मशान में
आदमी अकेला ही सोया है...
तन की चमक दमक में पागल हुआ
मन का मेल ना धोया है....
देखा है गुजर जाने के बाद
इस जमाने में किसने कितना रोया है....
ए नादां वक्त रहते संभल जा
क्यूं मगरूरियत में खोया है......
सब धरा का धरा पर धरा रह जाएगा
बता किसने आज तक कितना ढोया है .....
©Virat Mishra
#alone