जीत-हार (दोहे)
जीत-हार परिणाम है, क्यों होता हैरान।
वश मे तेरे कुछ नहीं, मत बन तू नादान।।
गीता में उपदेश है, होती उसकी जीत।
कर्म करे जो ध्यान से, सफल वही है मीत।।
जीत-हार की सोचना, करते हैं वो लोग।
बिना परिश्रम के यहीं, मिल जाए अब भोग।।
जीत-हार का भय यही, रोके सबके काम।
मंजिल भी मिलती नहीं, होते हैं बदनाम।।
जीत-हार में जो पड़ा, होता उनको कष्ट।
अहम् भरा व्यवहार में, हो जाता वो नष्ट।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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जीत-हार (दोहे)
जीत-हार परिणाम है, क्यों होता हैरान।
वश मे तेरे कुछ नहीं, मत बन तू नादान।।
गीता में उपदेश है, होती उसकी जीत।