मन में घबराहट लिए बेचनी को बांधे उठने को चाहता हूं | हिंदी Quotes

"मन में घबराहट लिए बेचनी को बांधे उठने को चाहता हूं मगर दिल ना माने चलने से लडखडा रहे कदम सिसकियों की एक आहट हैं अश्कों की नदियां बह रही ये मिट्टी का रंग आज लाल है पंछियों को कैद किया रोक दिया उनकी उड़ान को पिंजरों का दर्द आज पता चला जब तरस गए हर सास को आज कैद है हर इंसान सुकून कि वर्षा खोज रहे चिड़िया बनना चाहे मन लेकिन सितम का मंजर भोग रहे उजड़ गया सिंदूर टूट गई चार चूड़ी क्या करूंगी इस माथे का जब मांग ही पड़ गईं सुनी सड़को पर मांग रहे भीख अर्थी को कौन दे सहारा आज धन है आज अन्न है फिर क्यों है बेसहारा.. ये रात चुभ रही आंखो में सुबह की चिंता सता रही में धुंध में बैठे सोच रहा खुशी के बंधन खोज रहा जल गए शमशान सारे चिता का लगा भंडार अग्नि भी आज बोल उठी है ईश्वर रहम कर इस बार! मैं तपती तपती थक गई मुझसे और जला ना जाए मदद की बरखा कर दे तू अब मुझसे भी सहा ना जाए... ©𝕄𝕣ヅ ShUBhaM"

 मन में घबराहट लिए
बेचनी को बांधे उठने को
चाहता हूं मगर दिल ना माने
चलने से लडखडा रहे कदम
सिसकियों की एक आहट हैं
अश्कों की नदियां बह रही 
ये मिट्टी का रंग आज लाल है
पंछियों को कैद किया
रोक दिया उनकी उड़ान को
पिंजरों का दर्द आज पता चला जब
तरस गए हर सास को
आज कैद है हर इंसान
सुकून कि वर्षा खोज रहे
चिड़िया बनना चाहे मन
लेकिन सितम का मंजर भोग रहे
उजड़ गया सिंदूर
टूट गई चार चूड़ी
क्या करूंगी इस माथे का 
जब मांग ही पड़ गईं सुनी
सड़को पर मांग रहे भीख
अर्थी को कौन दे सहारा
आज धन है आज अन्न है
फिर क्यों  है बेसहारा..
ये रात चुभ रही आंखो में
सुबह की चिंता सता रही
में धुंध में बैठे सोच रहा
खुशी के बंधन खोज रहा
जल गए शमशान सारे
चिता का लगा भंडार
अग्नि भी आज बोल उठी
है ईश्वर रहम कर इस बार!
मैं तपती तपती थक गई
मुझसे और जला ना जाए
मदद की बरखा कर दे तू
अब मुझसे भी सहा ना जाए...

©𝕄𝕣ヅ ShUBhaM

मन में घबराहट लिए बेचनी को बांधे उठने को चाहता हूं मगर दिल ना माने चलने से लडखडा रहे कदम सिसकियों की एक आहट हैं अश्कों की नदियां बह रही ये मिट्टी का रंग आज लाल है पंछियों को कैद किया रोक दिया उनकी उड़ान को पिंजरों का दर्द आज पता चला जब तरस गए हर सास को आज कैद है हर इंसान सुकून कि वर्षा खोज रहे चिड़िया बनना चाहे मन लेकिन सितम का मंजर भोग रहे उजड़ गया सिंदूर टूट गई चार चूड़ी क्या करूंगी इस माथे का जब मांग ही पड़ गईं सुनी सड़को पर मांग रहे भीख अर्थी को कौन दे सहारा आज धन है आज अन्न है फिर क्यों है बेसहारा.. ये रात चुभ रही आंखो में सुबह की चिंता सता रही में धुंध में बैठे सोच रहा खुशी के बंधन खोज रहा जल गए शमशान सारे चिता का लगा भंडार अग्नि भी आज बोल उठी है ईश्वर रहम कर इस बार! मैं तपती तपती थक गई मुझसे और जला ना जाए मदद की बरखा कर दे तू अब मुझसे भी सहा ना जाए... ©𝕄𝕣ヅ ShUBhaM

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#we #Time @Priyanka Yadav kavita ranjan @shivani suryawanshi 𝐒𝐢𝐥𝐞𝐧𝐭 𝐰𝐨𝐫𝐝𝐬 आशीष रॉय 🇮🇳

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