हमारी प्यारी गौरैया सुना है तू विलुप्त हो रही है,,
मेरे आंगन , मेरे झरोखे से दूर हो रही है,,
तेरे खेल देख कर बड़ी हुई,,
तेरे साथ ही तो पूरा बचपन जिया,,
सुबह पढ़ते मे जब नींद आ जाती तो तू ही तो जगाती थी,,
क्या तू अपने घोसले से झाँक कर मुझे नही देखेगी,,
क्या तू मुझे नींद से नही जगायेगी,,
नही नही गौरैया दूर मत जाना,,
अपना बनाया घोसला सूना मत करना,,
झरोखे पर बैठ कर हमेशा गुनगुनाना ,,
मेरी प्यारी गौरैया दूर मत जाना।
गौरैया सा मन सबकी छतों पर सबके आंगन मे चहचहाता है,,
थोड़े से दाने और थोड़ा सा पानी और थोडी-सी जगह चाहता है।
©यशस्वी तिवारी
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