आँखों के रस्ते दिल तक पहुँचते किसी सुकून-सी,
क्षितिज में बिखरते अद्भुत इंद्रधनुषी रंगों सी तुम हो।
सर्दी के दिनों में मेरे तन-मन को हर्षित करती हुई,
हाँ... उसी सुनहरी, खिली, गुनगुनी धूप-सी तुम हो।
तपती गर्मी की दुपहरी में अंतर्मन को ठंडक देती,
लहराती, सरसराती उस चंचल मलय-सी तुम हो।
तन को भिगोती हुई अंतर्मन को भी आर्द्र करती,
बरखा में रिमझिम बरसती हुई फुहारों-सी तुम हो।
सुनो "मीन" मुझे मुझसे चुरा कर ले गई हो बहुत दूर,
लगता है तुम में तुम-सी और मुझ में मुझ-सी तुम हो।
✍️मीना सिंह "मीन" स्वरचित, नई दिल्ली
©Meena Singh Meen
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