क़लमकार की डायरी
Saturday, 30 October | 09:30 pm
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Expired
मुसाफ़िर हूँ,
मैं हर पल देखता हूँ ख़्वाब राहों के
किसी मंज़िल की फ़िकरों में,
क्यों ज़ाया हो सफ़र मेरा...
एक महफ़िल, मुसफ़िरो और मोहब्बत करने वालों के नाम जिसमें आप सुनेंगे क़लमकार की डायरी से कुछ चुनिंदा ग़ज़लें, नज़्में और कविताएँ... आइयेगा ज़रूर।