वो जो था ख़्वाब सा
उसे जाने दो ना
वो जो था गीत सा
गुनगुनाने दो ना
वो जो था याद सा
उसे भुलाने दो ना
शाम थी अब्र सी...
ढल जाने दो ना
वक़्त था रेत सा...
फ़िसल जाने दो ना
नाम था ओस सा
मिट जाने दो ना
पलकों पर अश्क सा
बह जाने दो ना..
वो था कांच सा
बिखर जाने दो ना!
©Ritu mishra pandey mausam
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