दास्तान-ए-जिंदगी का बस इतना सा फसाना है, एक आग का | हिंदी Shayari

"दास्तान-ए-जिंदगी का बस इतना सा फसाना है, एक आग का दरिया है और झुलसते हुए जाना है। पिछे खड़े बस माँ बाप, सामने पूरा ज़माना है, मची है होड़ यहाँ, नाम और इज़्ज़त कमाना है।"

 दास्तान-ए-जिंदगी का बस इतना सा फसाना है, 
एक आग का दरिया है और झुलसते हुए जाना है। 
पिछे खड़े बस माँ बाप, सामने पूरा ज़माना है, 
मची है होड़ यहाँ, नाम और इज़्ज़त कमाना है।

दास्तान-ए-जिंदगी का बस इतना सा फसाना है, एक आग का दरिया है और झुलसते हुए जाना है। पिछे खड़े बस माँ बाप, सामने पूरा ज़माना है, मची है होड़ यहाँ, नाम और इज़्ज़त कमाना है।

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