तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है.. कहीं अपनापन

"तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है.. कहीं अपनापन तो कहीं पीठ में खंजर क्यों है.. सुना है तू हर ज़र्रे में है रहता, फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है.. जब रहने वाले दुनिया के हर बन्दे तेरे हैं, फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों है.. तू ही लिखता है हर किसी का मुक़द्दर, फिर कोई बदनसीब, कोई मुक़द्दर का सिकंदर क्यों है... ©Sanoj"

 तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है..
कहीं अपनापन तो कहीं पीठ में खंजर क्यों है..

सुना है तू हर ज़र्रे में है रहता,
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है..

जब रहने वाले दुनिया के हर बन्दे तेरे हैं,
फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों है..

तू ही लिखता है हर किसी का मुक़द्दर,
फिर कोई बदनसीब,
कोई मुक़द्दर का सिकंदर क्यों है...

©Sanoj

तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है.. कहीं अपनापन तो कहीं पीठ में खंजर क्यों है.. सुना है तू हर ज़र्रे में है रहता, फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है.. जब रहने वाले दुनिया के हर बन्दे तेरे हैं, फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों है.. तू ही लिखता है हर किसी का मुक़द्दर, फिर कोई बदनसीब, कोई मुक़द्दर का सिकंदर क्यों है... ©Sanoj

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