मुझ अबोध बालक का पहला हिंदी अक्षर मां था। फिर जैसे

"मुझ अबोध बालक का पहला हिंदी अक्षर मां था। फिर जैसे बढ़ता गया, हिंदी ही मेरा सारा जहां था। सहसा मानसपटल पे छा गई हिंदी कि सुंदर फुलवारी, तद्भव, तत्सम और देशज शब्दों से महके हिंदी प्यारी। सुबह के किरणों सी और शाम की सुरमई सी हिंदी, हिंदी इतनी रची बसी है देखो, पीहू भी गाए डारी डारी। लिपि का अनुवाद है हिंदी, संस्कृत का प्रसाद है हिन्दी, जो कभी ना खत्म हो सके, वो भक्त प्रहलाद है हिन्दी। स्वछंद सी बहती है हिंदी, कल कल कर कहती है हिंदी, धरती के एक बड़े भूभाग का मर्यादित संवाद है हिन्दी। बोलियों की बेजोड़ श्रंखला, जगह जगह पर हैं फैली, अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, भोजपुरी, मालवी, बुंदेली, हरयाणवी,राजस्थानी सी,पंचपरगनिया,छत्तीसगढ़ी सी, नागपुरी,खोरठा,गढ़वाली,कुमाऊनी,मगही और बघेली। बोली भाषाओं के विस्तार का भी विस्तार है हिन्दी, अनगिनत अनुप्रासो से सुसजित अलंकार है हिन्दी। हिंदी से ही प्रेम परिभाषित, हिंदी दर्द की आवाज, भारत खंड की शोम्यता का अटल आधार है हिन्दी। किसी राज्य की राजभाषा, कहीं वो हक से वंचित है। अपने ही देश में देखो, हालत उसकी क्यूं कुंठित है। परिवेश - परिधान बदला अब भूल बैठे हैं हिन्दी को। इस व्यसायी करन में, हिंदी डूब ना जाए मन चिंतित है। इसलिए कहता हूं, अब हर संज्ञान तुम्हारा हिंदी हो। पढ़ो सारी भाषाएं, पर मन में ध्यान तुम्हारा हिंदी हो। हिंदी तुम्हे पुकार रही है, उसकी अब सुध तुम ले लो। पुस्तकों तक ना रहे सीमित,अनुष्ठान तुम्हारा हिंदी हो।"

 मुझ अबोध बालक का पहला हिंदी अक्षर मां था।
फिर जैसे बढ़ता गया, हिंदी ही मेरा सारा जहां था।

सहसा मानसपटल पे छा गई हिंदी कि सुंदर फुलवारी,
तद्भव, तत्सम और देशज शब्दों से महके हिंदी प्यारी।
सुबह के किरणों सी और शाम की सुरमई सी हिंदी,
हिंदी इतनी रची बसी है देखो, पीहू भी गाए डारी डारी।

लिपि का अनुवाद है हिंदी, संस्कृत का प्रसाद है हिन्दी,
जो कभी ना खत्म हो सके, वो भक्त प्रहलाद है हिन्दी।
स्वछंद सी बहती है हिंदी, कल कल कर कहती है हिंदी,
धरती के एक बड़े भूभाग का मर्यादित संवाद है हिन्दी।

बोलियों की बेजोड़ श्रंखला, जगह जगह पर हैं फैली,
अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, भोजपुरी, मालवी, बुंदेली,
हरयाणवी,राजस्थानी सी,पंचपरगनिया,छत्तीसगढ़ी सी,
नागपुरी,खोरठा,गढ़वाली,कुमाऊनी,मगही और बघेली।

बोली भाषाओं के विस्तार का भी विस्तार है हिन्दी,
अनगिनत अनुप्रासो से सुसजित अलंकार है हिन्दी।
हिंदी से ही प्रेम परिभाषित, हिंदी दर्द की आवाज,
भारत खंड की शोम्यता का अटल आधार है हिन्दी।

किसी राज्य की राजभाषा, कहीं वो हक से वंचित है।
अपने ही देश में देखो, हालत उसकी क्यूं कुंठित है।
परिवेश - परिधान बदला अब भूल बैठे हैं हिन्दी को।
इस व्यसायी करन में, हिंदी डूब ना जाए मन चिंतित है।

इसलिए कहता हूं, अब हर संज्ञान तुम्हारा हिंदी हो।
पढ़ो सारी भाषाएं, पर मन में ध्यान तुम्हारा हिंदी हो।
हिंदी तुम्हे पुकार रही है, उसकी अब सुध तुम ले लो।
पुस्तकों तक ना रहे सीमित,अनुष्ठान तुम्हारा हिंदी हो।

मुझ अबोध बालक का पहला हिंदी अक्षर मां था। फिर जैसे बढ़ता गया, हिंदी ही मेरा सारा जहां था। सहसा मानसपटल पे छा गई हिंदी कि सुंदर फुलवारी, तद्भव, तत्सम और देशज शब्दों से महके हिंदी प्यारी। सुबह के किरणों सी और शाम की सुरमई सी हिंदी, हिंदी इतनी रची बसी है देखो, पीहू भी गाए डारी डारी। लिपि का अनुवाद है हिंदी, संस्कृत का प्रसाद है हिन्दी, जो कभी ना खत्म हो सके, वो भक्त प्रहलाद है हिन्दी। स्वछंद सी बहती है हिंदी, कल कल कर कहती है हिंदी, धरती के एक बड़े भूभाग का मर्यादित संवाद है हिन्दी। बोलियों की बेजोड़ श्रंखला, जगह जगह पर हैं फैली, अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, भोजपुरी, मालवी, बुंदेली, हरयाणवी,राजस्थानी सी,पंचपरगनिया,छत्तीसगढ़ी सी, नागपुरी,खोरठा,गढ़वाली,कुमाऊनी,मगही और बघेली। बोली भाषाओं के विस्तार का भी विस्तार है हिन्दी, अनगिनत अनुप्रासो से सुसजित अलंकार है हिन्दी। हिंदी से ही प्रेम परिभाषित, हिंदी दर्द की आवाज, भारत खंड की शोम्यता का अटल आधार है हिन्दी। किसी राज्य की राजभाषा, कहीं वो हक से वंचित है। अपने ही देश में देखो, हालत उसकी क्यूं कुंठित है। परिवेश - परिधान बदला अब भूल बैठे हैं हिन्दी को। इस व्यसायी करन में, हिंदी डूब ना जाए मन चिंतित है। इसलिए कहता हूं, अब हर संज्ञान तुम्हारा हिंदी हो। पढ़ो सारी भाषाएं, पर मन में ध्यान तुम्हारा हिंदी हो। हिंदी तुम्हे पुकार रही है, उसकी अब सुध तुम ले लो। पुस्तकों तक ना रहे सीमित,अनुष्ठान तुम्हारा हिंदी हो।

#Hindidiwas

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