हर बार शायरी या कोई कविता हो ये जरुरी नही होता. कभी कभी बातो को बातो की तरहा कहा जाए तो बहेतर होता हैं...
कुछ ही देर पहेले पंखे को बडे भाई का स्कार्फ बांध कर खुद को लटकाने की कोशिश कर चुका हुं . जो नाकमयाब साबित हुई... हालाकी इस बार तयारी पुरी थी , हिम्मत भी साथ दे रही थी.... पर घर वालो ने रूम को दरवाजे नाहि लगाएं , इसिलिये खेलं बिगड गया....
पर अच्छा ही हुआ , बिगड गया.... कुछ पलो की हताशा मे ....कुछ फालतू सा कर बैठता... फिलहाल घर की एक मजबूत दिवारो मे से एक मैं हुं....... ये अहंकार नहि सत्यता हैं..... ओर मेरी तबीयत मेरा बडा साथ दे रही है जिस्के चलते मैं कुछ दिनो से बेड पर ही हुं.... स्थिती अंबानी से कम नहीं हैं वैसे....
घरवालो को कभी दुःख क्या ओर कित्ना हैं इसका बाखान करते नही देखा...
प्रकृती को धन्यवाद मुझे जीवन दान देने हेतू.... पर ये अंतिम प्रयास था खुद को समाप्त करने का... जो विफल हुआ.
अब सारी समास्याओको विफल करने के सीवाय कोई पर्याय नहि,... मृत्यू भी नही.
#सत्यसाधक
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#SuperBloodMoon