मै दुनिया न देख लेती अगर दुनिया में आ जाती मैं लड | हिंदी कविता

"मै दुनिया न देख लेती अगर दुनिया में आ जाती मैं लड़की हूँ, मुझे कोंख में मारा गया है मेरी ख्वाहिशों से मेरे घर की इज्ज़त पे आंच आती मैं बेटी हूँ, मुझे सर से उतारा गया है मेरे दहलीज़ भर लांघ जाने से मैं जाने क्या क्या ना कहलाती मैं बहन हूँ , मुझे बस इस नाम से पुकारा गया है नज़रें झुका के दिल को समझा के ही घर को बचा पाती मैं पत्नी हूँ , मुझे बेड़ियों से संवारा गया है मेरे आवाज़ उठाने से मेरे बच्चों पे बात आती मैं माँ हूँ, मुझे हक़ से बेचारा गया है मेरी ख़ुद की ज़ात ही मुझे महबूबा, माहपारा तो कभी देवी बना जाती मैं औरत हूँ, मुझे सिरे से नकारा गया है"

 मै  दुनिया न देख लेती अगर दुनिया में आ जाती
मैं लड़की हूँ, मुझे कोंख में मारा गया है

मेरी ख्वाहिशों से मेरे घर की इज्ज़त पे आंच आती
मैं बेटी हूँ, मुझे सर से उतारा गया है

मेरे दहलीज़ भर लांघ जाने से मैं जाने क्या क्या ना कहलाती
मैं बहन हूँ , मुझे बस इस नाम से पुकारा गया है

नज़रें झुका के दिल को समझा के ही घर को बचा पाती
मैं पत्नी हूँ , मुझे बेड़ियों से संवारा गया है

मेरे आवाज़ उठाने से मेरे बच्चों पे बात आती
मैं माँ हूँ, मुझे हक़ से बेचारा गया है

मेरी ख़ुद की ज़ात ही मुझे महबूबा, माहपारा तो कभी देवी बना जाती
मैं औरत हूँ, मुझे सिरे से नकारा गया है

मै दुनिया न देख लेती अगर दुनिया में आ जाती मैं लड़की हूँ, मुझे कोंख में मारा गया है मेरी ख्वाहिशों से मेरे घर की इज्ज़त पे आंच आती मैं बेटी हूँ, मुझे सर से उतारा गया है मेरे दहलीज़ भर लांघ जाने से मैं जाने क्या क्या ना कहलाती मैं बहन हूँ , मुझे बस इस नाम से पुकारा गया है नज़रें झुका के दिल को समझा के ही घर को बचा पाती मैं पत्नी हूँ , मुझे बेड़ियों से संवारा गया है मेरे आवाज़ उठाने से मेरे बच्चों पे बात आती मैं माँ हूँ, मुझे हक़ से बेचारा गया है मेरी ख़ुद की ज़ात ही मुझे महबूबा, माहपारा तो कभी देवी बना जाती मैं औरत हूँ, मुझे सिरे से नकारा गया है

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