औरत को कितने साजों श्रृंगार के सामानों की जरूरत होती है लेकिन वे अपनी इच्छाएं मारती है कम करती है ताकि आपकी जेब और कंधों का भार उसके त्याग से कुछ कम हो जाएं,
लेकिन तुम उसे ही कमज़ोर कम अक्ल, दुनियादारी की समझ नही है बताते हों
औरत के कई तरह के त्याग की वजह से तुम अपनी कमाई पर घमंड कर पाते हों
अपने ही घर की नारी को आदमी ने हक अधिकार सम्मान,खुलकर जीना, जागरूक होना सब से वंचित रखा,
औरत को उतने ही हक उतना ही सम्मान चाहिए,आराम चाहिए जितना एक आम इंसान को।
जिस तरह तोड़ती है दुनियां समाज एक इंसान को हम भी तैयार है दुनिया की चोट खाने के लिए लेकिन आपने दुनियादारी भेदभाव दिखाया घर में हमें।