शायद मेरे जैसा इश्क किसी का मुकम्मल नहीं हो
वह आज भी मुझे खोने से इतना डरती है
जैसे किसी वृक्ष से खो ना जाए उसकी धरती है
वह बेताब रहती है मेरे चेहरे की हर एक मुस्कान के लिए
मानो सूरज से भी भिड़ जाए मेरे गर्मी की शाम के लिए
उसकी जैसी खूबसूरत दुआ किसी की कबूल नहीं हो
शायद मेरे जैसा इश्क किसी का मुकम्मल नहीं हो ।
मेरा इश्क़ मेरी माँ
मेरा इश्क़ मेरी माँ
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