पहला नशा पहला पहला ख्वाब था वो
हाथो का कंगन मेरे
बालो का गुलाब था वो
मेरी मोहब्बत में बेहिसाब था वो
मेरी जुबां में दिन और रात था वो
मेरी आंखों में उसका चेहरा था
मेरी ओंठो की मुस्कान के पीछे बस उसका पहरा था।
क्याशिकायत करू रब से वो रब का ही तो चेहरा था था
बस इतना जानती हूं बहुत ही पाक था
मेरा पहला नशा