रात में क्यों खड़ी हो समंदर के किनारे,
तुम्हें देखने उमड़ पड़ेंगे अभी लोग सारे,
नहीं तुम कोई अप्सरा ना कोई जलपरी
नज़रें गढ़ा लेंगे फिर भी हुस्न के मारे!
इशारों से कहेंगे पास आ जाओ हमारे,
प्यार का पुजारी बताते हैं ख़ुद को प्यारे,
ना आना इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में
होते हैं यहाँ बस रस के प्यासे लोग सारे !
जैसे चाँद को घूर कर देखते हैं यह तारे,
अकेली नारी को घूरते हैं लोग यहाँ सारे,
सीख लो अपनी सुरक्षा का पाठ तुम भी
अकेली पड़ोगी भारी होंगी चाहे कतारें!
©SumitGaurav2005
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