वो, इक तन्हा नदी है ना जो.... गांव के उस छोर की रे | हिंदी शायरी

"वो, इक तन्हा नदी है ना जो.... गांव के उस छोर की रेत को हमेशा अपने अश्कों से नम रखती है... उसी गीली रेत पर मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं दूर क्षितिज में उजास मन्दार के समीप शाम को तुम्हें अलविदा कहने तक!! 😊❤️ ©Shivbhkttiivaari"

 वो,
इक तन्हा नदी है ना जो....
गांव के उस छोर की रेत को हमेशा
अपने अश्कों से नम रखती है...
उसी गीली रेत पर मैं तुम्हारे 
साथ चलना चाहता हूं दूर क्षितिज में
उजास मन्दार के समीप शाम को 
तुम्हें अलविदा कहने तक!!
😊❤️

©Shivbhkttiivaari

वो, इक तन्हा नदी है ना जो.... गांव के उस छोर की रेत को हमेशा अपने अश्कों से नम रखती है... उसी गीली रेत पर मैं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं दूर क्षितिज में उजास मन्दार के समीप शाम को तुम्हें अलविदा कहने तक!! 😊❤️ ©Shivbhkttiivaari

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