प्रेम की शाखाओं पर उलझा ये डोर कैसा है? मन के भीतर | हिंदी Shayari

"प्रेम की शाखाओं पर उलझा ये डोर कैसा है? मन के भीतर उफ़ान लेता ये ज़ोर कैसा है? आँधियाँ तो यूँही आती ही रहेंगी उम्र भर, लेक़िन नफ़रतों के इस शहर में ये शोर कैसा है? ✍️धर्मेन्द्र सिंह "धर्मा" ©Dharmendra Singh "Dharma""

 प्रेम की शाखाओं पर उलझा ये डोर कैसा है?
मन के भीतर उफ़ान लेता ये ज़ोर कैसा है?
आँधियाँ तो यूँही आती ही रहेंगी उम्र भर,
लेक़िन नफ़रतों के इस शहर में ये शोर कैसा है?

✍️धर्मेन्द्र सिंह "धर्मा"

©Dharmendra Singh "Dharma"

प्रेम की शाखाओं पर उलझा ये डोर कैसा है? मन के भीतर उफ़ान लेता ये ज़ोर कैसा है? आँधियाँ तो यूँही आती ही रहेंगी उम्र भर, लेक़िन नफ़रतों के इस शहर में ये शोर कैसा है? ✍️धर्मेन्द्र सिंह "धर्मा" ©Dharmendra Singh "Dharma"

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