अभी ख़्वाबों का मंजर टूटा ही कहाँ था, कि जीना पड़ा | हिंदी विचार

"अभी ख़्वाबों का मंजर टूटा ही कहाँ था, कि जीना पड़ा गैर-ख़्वाहिशों के लिये।। ©Ram Prakash Singh"

 अभी ख़्वाबों का मंजर टूटा ही कहाँ था, 
कि जीना पड़ा गैर-ख़्वाहिशों के लिये।।

©Ram Prakash Singh

अभी ख़्वाबों का मंजर टूटा ही कहाँ था, कि जीना पड़ा गैर-ख़्वाहिशों के लिये।। ©Ram Prakash Singh

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