वो गुलाब ही क्या कि, जिसमें कांटे न हों‌। वो मंज | हिंदी कविता

"वो गुलाब ही क्या कि, जिसमें कांटे न हों‌। वो मंज़िल ही क्या कि, जिसकी जानिब रूकावटें न हो।"

 वो गुलाब ही क्या कि,

जिसमें कांटे न हों‌।

वो मंज़िल ही क्या कि,

जिसकी जानिब रूकावटें न हो।

वो गुलाब ही क्या कि, जिसमें कांटे न हों‌। वो मंज़िल ही क्या कि, जिसकी जानिब रूकावटें न हो।

जानिब = ओर, तरफ

#DawnSun

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