"जो अगर मैं बताऊ तुझे अभी
सच यकीन तुझे आयेगा नही
सब्र रख वक़्त को ,वक़्त को
कुछ ढल जाने दे ये जो चिरागों
की हल्की हल्की रोशनी है इसे
कुछ कम हो जाने दे सब्र रख
वक़्त तुझे खुद सही गलत बतायेगा
सच और झूठ का फर्क भी बतायेगा
क्या सही था ओर क्या गलत तुझे
खुद-ब-खुद समझ आयेगा"