अरे मृत्यु पर क्या अट्टहास
तू गुम गया है ए इंसान ?
यह आखिरी एक सत्य है
मृत्यु असली अंत है
क्या देखता खुद में कभी
क्या सोचता फिर से कभी
जो खुद को तू है मानता
क्या तू अभी तक है वही
जो राख बनकर उड़ गए
जो अश्रुओं में ढल गए
ना आएंगे फिर वो कभी
बतलायेंगे हम सब यही
खोज ले , सच को यही
तू गुम है शायद फिर कहीं
यह वक़्त आता आखिरी
मैं भी सही , तू भी सही
©Anubhav Pandey