#OpenPoetry सिरहाने से सट्टे एक कोने में गुज़ारी स

"#OpenPoetry सिरहाने से सट्टे एक कोने में गुज़ारी सारी रात। खर्राटों के शोर से परेशान मेरे बिस्तर ने ,आज सिसकियाँ सुनते गुज़ारी सारी रात। जो मेरे लात-घुसे खाता रेहता था रातभर। आज उस तकिये ने भी सीने से लगकर गुज़ारी सारी रात। चादर का इक कोना मुझे आवाज़ देता रहा रातभर। और इक छोर को भिगोकर मेने गुज़ारी सारी रात । सारी रात यह आलम रहा कि मेने उसे याद किया। उसने भी हिचकियों से होकर परेशान गुज़ारी सारी रात।"

 #OpenPoetry सिरहाने से सट्टे एक कोने में गुज़ारी सारी रात।
खर्राटों के शोर से परेशान मेरे बिस्तर ने ,आज सिसकियाँ सुनते गुज़ारी सारी रात। 

जो मेरे लात-घुसे खाता रेहता था रातभर। 
आज उस तकिये ने भी सीने से लगकर गुज़ारी सारी रात। 

चादर का इक कोना मुझे आवाज़ देता रहा रातभर। 
और इक छोर को भिगोकर मेने गुज़ारी सारी रात ।

सारी रात यह आलम रहा कि मेने उसे याद किया।
उसने भी हिचकियों से होकर परेशान गुज़ारी सारी रात।

#OpenPoetry सिरहाने से सट्टे एक कोने में गुज़ारी सारी रात। खर्राटों के शोर से परेशान मेरे बिस्तर ने ,आज सिसकियाँ सुनते गुज़ारी सारी रात। जो मेरे लात-घुसे खाता रेहता था रातभर। आज उस तकिये ने भी सीने से लगकर गुज़ारी सारी रात। चादर का इक कोना मुझे आवाज़ देता रहा रातभर। और इक छोर को भिगोकर मेने गुज़ारी सारी रात । सारी रात यह आलम रहा कि मेने उसे याद किया। उसने भी हिचकियों से होकर परेशान गुज़ारी सारी रात।

#OpenPoetry #sari_raat

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