मैं नहीं जानता, क्यों उदास हू .
जिसकी कोई करे न तलाश करे, वह तलाश हू.
नदी के किनारों की तरह
लगने लगे है रिश्ते
जिनमे सेतु बाँधने का
करता प्रयास हू.
मैं नहीं जानता, क्यों उदास हू .
जिसकी कोई करे न तलाश करे, वह तलाश हू.
वे दूर चले गए कैसे ,
नहीं जानता जरा भी,
जबकि रहता उनके मैं
आस पास हू
मैं नहीं जानता, क्यों उदास हू .
जिसकी कोई करे न तलाश करे, वह तलाश हू.
भय ने घेर लिया इतना
भीतर तक,
फिर भी मौका है शायद,
इसी लिए नहीं ,मैं निराश हू.
मैं नहीं जानता, क्यों उदास हू .
जिसकी कोई करे न तलाश करे, वह तलाश हू.
©Kamlesh Kandpal
#talaash