दरकते पर्वतों की आवाज़ सुन लो
बची कोई न उनमे अब सास बाकी
न उम्मीद है जिन्दगि की बची अब
बची कोई न उनमे अब आस बाकी
यह आंधी आधुनिक युगों की ले डूबी
पहाड़ो के बचपन और उनकी जवानी
यह ले डूबी घर की कमाई भी सारी
यह ले डूबी बूढ़ी नानी की कहानी
यह मेरी खामोशी भी कहती बहुत कुछ
मैं हूं जोशीमठ सुनलो मेरी जुबानी
#जोशीमठ