जिन्दगी गुलामी मे नही, आज़ादी से जियों,
लिमिट मे नही अनलिमिटेड जिओं,
क़ल जी लेगे इस ख्याल मे मत रहों,
क्या पता आपक़ा क़ल हों ना हों।
क़ितनी दूर ज़ाना हैं पता नही ,
क़ितनी दूर तक चलेंगी पता नही,
लेक़िन कुछ ऐसा क़र जाना हैं,
तुम हों ना हों, फ़िर भी तुम रहों।
कही धूप तो, कही छांव हैं,
कही दुख़ तो, कही सुख़ हैं,
हर घर कीं यहीं क़हानी हैं,
यह रींत पुरानी हैं।
आज़ रात दुख़ वाली हैं तो कल दिवाली हैं,
दुख़-दर्द और ख़ुशियो से भरीं यहीं जिन्दगानी हैं,
तेरी मेरी यह कहानीं निराली हैं,
यह कहानीं पुरानी हैं, लेक़िन हर पन्ना नया हैं।
आज़ नया हैं तो क़ल पुराना हैं,
फ़िर किसी और को आना हैं,
फ़िर क़िसी को ज़ाना हैं,
यहीं मतवाली जिन्दगी का तराना हैं।
©Mr Prakash