मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी, चल तो रह | हिंदी कविता

"मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी, चल तो रही थी मैं तन्हा पर न जाने कितने सवालों की गुत्थी मेरी सहेली थी , सर पे था खुला आसमां पैरो के नीचे थी जमीं होठों में मुस्कुराहट पर आंखो में थी नमी, मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी।।। ©Meenu pant Tripathi Haldwani Nainital"

 मन में एक पहेली थी
मैं सबके बीच अकेली थी,
चल तो रही थी मैं तन्हा 
पर न जाने कितने
 सवालों की गुत्थी 
मेरी सहेली थी ,
 सर पे था खुला आसमां
पैरो के नीचे थी जमीं
होठों में मुस्कुराहट पर
आंखो में थी नमी,
 मन में एक पहेली थी 
मैं सबके बीच अकेली थी।।।

©Meenu pant Tripathi Haldwani Nainital

मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी, चल तो रही थी मैं तन्हा पर न जाने कितने सवालों की गुत्थी मेरी सहेली थी , सर पे था खुला आसमां पैरो के नीचे थी जमीं होठों में मुस्कुराहट पर आंखो में थी नमी, मन में एक पहेली थी मैं सबके बीच अकेली थी।।। ©Meenu pant Tripathi Haldwani Nainital

#Main_akeli

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