"मुश्किलों का एक क़ाफ़िला चलता है अपने साथ
झूठी मुस्कुराहट छिपातें है कुछ गहरे राज़
अपनों के सपनों का सिर पर बोझ है
आज अच्छा तो कल बुरा ये हर रोज़ है
मन में बातें और डर को किनारे कर निकलते बाहर हैं
रुकावट की कश्ती लोगों के ताने ये मिलते हर बार हैं
आसान लगती है ये मर्द की ज़िंदगी
ये बात हर महिला की ज़ुबान पे
कभी मिले मौक़ा तो झांकना उनकी आँख में
झलकता यही से सब बस समझने वाला हो कोई साथ में "