मैं दफ़्तर भी जाती हूँ और नज़्म भी लिखती हूँ, आज क | हिंदी कविता

"मैं दफ़्तर भी जाती हूँ और नज़्म भी लिखती हूँ, आज की नारी हूँ, किसी के रोकने से नहीं रूकती कभी शीतल तो कभी धूप हूँ, कभी लक्ष्मी तो कभी काली हूँ, प्रेम भी हूँ और माया भी हूँ, आज की नारी हूँ, दफ़्तर भी जाती हूँ और नज़्म भी लिखती हूँ ..... ©asmitamohanty . #authorasmitamohanty"

 मैं दफ़्तर भी जाती हूँ 
और नज़्म भी लिखती हूँ, 
आज की नारी हूँ, 
किसी के रोकने से नहीं रूकती
कभी शीतल तो कभी धूप हूँ, 
कभी लक्ष्मी तो कभी काली हूँ, 
प्रेम भी हूँ और माया भी हूँ, 
आज की नारी हूँ, 
दफ़्तर भी जाती हूँ और 
नज़्म भी लिखती हूँ ..... 


©asmitamohanty
.
#authorasmitamohanty

मैं दफ़्तर भी जाती हूँ और नज़्म भी लिखती हूँ, आज की नारी हूँ, किसी के रोकने से नहीं रूकती कभी शीतल तो कभी धूप हूँ, कभी लक्ष्मी तो कभी काली हूँ, प्रेम भी हूँ और माया भी हूँ, आज की नारी हूँ, दफ़्तर भी जाती हूँ और नज़्म भी लिखती हूँ ..... ©asmitamohanty . #authorasmitamohanty

मैं दफ़्तर भी जाती हूँ
और नज़्म भी लिखती हूँ,
आज की नारी हूँ,
किसी के रोकने से नहीं रूकती
कभी शीतल तो कभी धूप हूँ,
कभी लक्ष्मी तो कभी काली हूँ,
प्रेम भी हूँ और माया भी हूँ,
आज की नारी हूँ,

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