रोज़गार के मुँह पर ताला नौकरियों के काटे हाथ यह मुद | हिंदी कविता

"रोज़गार के मुँह पर ताला नौकरियों के काटे हाथ यह मुद्दे इतने ज्वलन्त है जो देंगे बरसों तक साथ नई नियुक्ति निर्वासन पर और पुरानी चक्कर काटे इसी घोषणा से निर्वाचित कइयों ने तो सालों काटे ऊँची डिग्री पाई जब तक सारी देह तिकोनी हो गई इतनी ऊँची मिली नौकरी और सैलरी बौनी हो गई ऐसा ना हो डिग्री फाँसी खा ले युवा मर जाये सब अपने ढंग बदलो सरकारों छोड़ो ये घटिया करतब मूलभूत अधिकार पड़ा बस मरघट जाने को तैयार उम्मीदों की चिता धधकती रोटी सेक रही सरकार ©Chandrashekhar Trishul"

 रोज़गार के मुँह पर ताला नौकरियों के काटे हाथ
यह मुद्दे इतने ज्वलन्त है जो देंगे बरसों तक साथ 

नई नियुक्ति निर्वासन पर और पुरानी चक्कर काटे 
इसी घोषणा से निर्वाचित कइयों ने तो सालों काटे 

ऊँची डिग्री पाई जब तक सारी देह तिकोनी हो गई 
इतनी ऊँची मिली नौकरी और सैलरी बौनी हो गई

ऐसा ना हो डिग्री फाँसी खा ले युवा मर जाये सब
अपने ढंग बदलो सरकारों छोड़ो ये घटिया करतब 

मूलभूत अधिकार पड़ा बस मरघट जाने को तैयार 
उम्मीदों की चिता धधकती रोटी सेक रही सरकार

©Chandrashekhar Trishul

रोज़गार के मुँह पर ताला नौकरियों के काटे हाथ यह मुद्दे इतने ज्वलन्त है जो देंगे बरसों तक साथ नई नियुक्ति निर्वासन पर और पुरानी चक्कर काटे इसी घोषणा से निर्वाचित कइयों ने तो सालों काटे ऊँची डिग्री पाई जब तक सारी देह तिकोनी हो गई इतनी ऊँची मिली नौकरी और सैलरी बौनी हो गई ऐसा ना हो डिग्री फाँसी खा ले युवा मर जाये सब अपने ढंग बदलो सरकारों छोड़ो ये घटिया करतब मूलभूत अधिकार पड़ा बस मरघट जाने को तैयार उम्मीदों की चिता धधकती रोटी सेक रही सरकार ©Chandrashekhar Trishul

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