ये अकेलापन शुरू-शुरू में बहुत खलता है,
कभी खुद से घृणा होने लगती है तो
कभी खुद पर दया आने लगती है,
पर नियती ने जब हमें ये अकेलापन दिया ही है,
तो इसे स्वीकार करते है न
माना आज ये खलरहा है,
कांटों की भांति चुभ रहा है,
क्या पता कल यही फूलों सी कोमलता लगने लगे।।
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