जब ख्वाहिशें थी तुम्हारी आसमानों को छूने की,
तो बादलों की गड़गड़ाहट से भी कहां तुम थमने वाले थे।
जब जज्बा था ही तुममे चक्रवातो से उलझने का,
तो कहां समंदर के मझधार में तुम खुद को ना खड़ा करने वाले थे।
दुनिया तुम्हें बुजदिल ठहराती,
पर तुम दुनिया के नजरिए को कहां अपनाने वाले थे।
हां तुम साबित नहीं करते थे बेशक खुद की निर्भीकता को,
पर कब तक तुम अपनी अस्मिता को नकारने वाले थे,
जब उड़ान शिखर को चूमने की थी,
तो पथरीली चट्टानों से भी तुम कहां भयभीत होने वाले थे।
यह सफर था बेहद खूबसूरत तुम्हारे लिए,
जिसे तुम बड़ी खूबसूरती के साथ निखारना
चाहते थे
अबोध नहीं हूं तुम्हारी अंतरात्मा से,
हां पता है मुझे तुम भी खुद की मंजिल को बेहद खुशनुमा चाहते थे ।।
©komal Joshi
#RIPMilkhaSingh