पर वो चलता रहा
कांच सा ये सफर सम्भल कर पाव रखता रहा
कभी अपनों से तो कभी गेरो से सपनों को बचाता रहा
चौराहे पे खड़ा हो अपने रास्ते को खोजता रहा
चुन कर एक कश मकश में धीरे धीरे पाव उठाता रहा
पतझड़ हो या तूफानी बारिश
आंखे मूंद मुस्कुराता रहा
हर मौसम में नई आस का
ढाढस बांधता रहा
पर वो चलता रहा
साहिल पर बैठ कर
कश्तियों को निहारता रहा
सूरज की गर्मी में युहीं तपता रहा
झटक कर कपड़े रेत में लिपटे
उठ कर खड़ा हुआ
सपनो का उठा झोला
सफर की ओर चलता रहा
खुद की ना कहता सिर्फ दूसरो की सुनता रहा
उन्हें धेर्य का दीपक दे खुद लो बन जलता रहा
हर शाम आसमान की ओर देख प्रार्थना करता रहा
यूंही अपने राम को रोज पुकारता रहा
डगमगाया पर थमा नहीं युहीं मुस्कुराता रहा
अपने राम पर विश्वास कर फिर से वो चलता रहा
पर वो रुका नहीं हारा नहीं थमा नहीं
वो चलता रहा
संकल्प को पूरा करने के लिए वो चलता रहा।।
##swapna dongre##
#Par vo chalta raha#my voice my poem# ❤️❤️