दोस्त
मैं खुद की निगाहों में तमाशा कर रहा हूं!
मैं हर रोज़ नहीं हर पल मर रहा हूं!
कभी जो देख लूँ खुद को आईने में,
फ़िर मैं सोचता हूं यार क्या कर रहा हूं!
उसे कोई ज़रा भी फर्क़ ही नहीं पड़ता ,
के मैं जिंदा हूँ या मैं मर रहा हूं,
यही तो देखना है दोस्ती में "परवेज़",
के कौन मेरे होने ना होने से आंहें भर रहा है!
©Written By PammiG
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