बावला कहे या विक्षिप्त जमाना,
मुझे गम नहीं है।
तुम हो तो जमाना,
बाकी कुछ भी नहीं है।
तुम धर्म की मूरत,
फिर भी तेरी कदर नहीं है।
तेरे अमृत(दूध)को दौड़े जमाना,
पर विष(सेवा- सुश्रुषा) को हर-हर शंभू नहीं है।
उष्णोदक(चाय ज़हर) में अमृत,
पौष्टिक आहार में भी वही है।
जो रख सकेगा नंदी,
वह अब हर-हर शिव शंभू नहीं है।
जा गौ माता तेरा लाडला कांन्हा,
वो भी नहीं है।(गोपीयों में लीन है)
उसके नाम से ठगी, (भागवत)
ऐसे कारोबारी से धरती पटी है।
जिधर भी देखो तेरी हत्या,
सनातन में तेरा कोई लाल नहीं है।
हमें भी ना तेरी ना सनातन की परी है।।
-नंदन
नोट:-ओझल होता मानवता
©नंदन.
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