#मैं_नारी_कलियुग_की तुम क्या तोडोगे जान मुझे मै

"#मैं_नारी_कलियुग_की तुम क्या तोडोगे जान मुझे मै ख़ुद एक टूटा तारा हूं तुम क्या लूटोगे चैन मेरा मैं ख़ुद बेचैन आवारा हूं, चाहो तो कर लो प्रयास व्यर्थ, मैं अपने हृदय में प्यारी हूं मैं खुद से टूटी मैं ख़ुद में जुड़ी मैं अपनी राज दुलारी हूं! तुम क्या छिनोगे सम्मान मेरा मैं खुद सम्मान गवांई हूं अपने अधरो को सील लो तुम,मैं अब खंजर वाली नारी हूं, तुम आंख दिखा कर रावण सा मुझको ना उकसाना अब मैं धधक गई तब सीता थी, अब भड़क गई तो काली हूं! तुम राग बिलाप क्यों करते हो मैं अपने कर्मों की भागी हूं तुम ताज़ पहन कर बैठो हो तो मैं शीश मुकुट पे नागिन हूं, मुझे बेड़ियों में जकड़ने की एक और भूल ना करना तुम संभल गई जो कुल बधू थी,बहक गई तो झांसी वाली रानी हूं! तुम ना सिखलना प्रेम मुझे,मैं प्रेम कला में अति माहिर हूं अब ना छल पाओगे जिस्म मेरा,मैं वो रूह दफ़न कर आई हूं, आधी नंगी तस्वीरों को सामूहिक करने की धमकी ना देना अब कुम्हला गई जो अबला थी,अब डस लुंगी तुम्हें वो विष कन्या हूं ! मुख़ पे अर्धांगिनी तुम कहते हो,मन में झाड़ू-बर्तन करने वाली हो फ़ैसला करने का अधिकार नहीं, बस मशीन वंश चलाने वाली हो सड़कों पे झुमों नाले में गिरो फ़िर घर में गाली की बौछार करो, मैं तनिक झुंझला भी जाऊं तो मेरे ही चरित्र पे हज़ार सवाल करो! अब गलती से भी मुख ना लगना तुम, मैं बहुत रह ली मौन प्रिये, तुम गौशाला में टिको तनिक,मैं भी मधुशाला का चखुं शौक़ प्रिये एक ज़रा तनिक जो विचले तुम मैं फ़िर से ना सहन कर पाऊंगी सुबक गई जो संजीदा थी अब उचक गई तो हर लूंगी प्राण प्रिये ! जबरन बिठा थी जिसको चिता पे, वो सती नहीं निष्ठुरता थी रीति रिवाज़ के आड़ में सर्वस्व भोगी मानव की कायरता थी, मुझको ना समझना नारी तुम, नौ दुर्गा सा सिंह पे सवार फिरू अब पुजोगे तब मैं देवी हूं,जो सनक गई  तो सिर्फ़ संघार करूं! तुम चाह सिंहासन की बेशक रख लो,पर मूझको ना दासी बतलाना मैं चाह क़लम की रखती हूं,मुझसे सिर्फ़ झाड़ू बर्तन ना करवाना मैं चपल वाण सी चंचल नारी,जो जगत में धरती का श्रृंगार करुं शांत रह गई जो सतयुग था,कलियुग में कल्पना सा ललकार करूं!! -रंजन ©रंजन"

 #मैं_नारी_कलियुग_की 

तुम क्या तोडोगे जान मुझे मै ख़ुद एक टूटा तारा हूं
तुम क्या लूटोगे चैन मेरा मैं ख़ुद बेचैन आवारा हूं,
चाहो तो कर लो प्रयास व्यर्थ, मैं अपने हृदय में प्यारी हूं
मैं खुद से टूटी मैं ख़ुद में जुड़ी मैं अपनी राज दुलारी हूं!

तुम क्या छिनोगे सम्मान मेरा मैं खुद सम्मान गवांई हूं
अपने अधरो को सील लो तुम,मैं अब खंजर वाली नारी हूं,
तुम आंख दिखा कर रावण सा मुझको ना उकसाना अब
मैं धधक गई तब सीता थी, अब भड़क गई तो काली हूं!

तुम राग बिलाप क्यों करते हो मैं अपने कर्मों की भागी हूं
तुम ताज़ पहन कर बैठो हो तो मैं शीश मुकुट पे नागिन हूं,
मुझे बेड़ियों में जकड़ने की एक और भूल ना करना तुम
संभल गई जो कुल बधू थी,बहक गई तो झांसी वाली रानी हूं!

तुम ना सिखलना प्रेम मुझे,मैं प्रेम कला में अति माहिर हूं
अब ना छल पाओगे जिस्म मेरा,मैं वो रूह दफ़न कर आई हूं,
आधी नंगी तस्वीरों को सामूहिक करने की धमकी ना देना अब
कुम्हला गई जो अबला थी,अब डस लुंगी तुम्हें वो विष कन्या हूं !

मुख़ पे अर्धांगिनी तुम कहते हो,मन में झाड़ू-बर्तन करने वाली हो
फ़ैसला करने का अधिकार नहीं, बस मशीन वंश चलाने वाली हो
सड़कों पे झुमों नाले में गिरो फ़िर घर में गाली की बौछार करो,
मैं तनिक झुंझला भी जाऊं तो मेरे ही चरित्र पे हज़ार सवाल करो!

अब गलती से भी मुख ना लगना तुम, मैं बहुत रह ली मौन प्रिये,
तुम गौशाला में टिको तनिक,मैं भी मधुशाला का चखुं शौक़ प्रिये
एक ज़रा तनिक जो विचले तुम मैं फ़िर से ना सहन कर पाऊंगी
सुबक गई जो संजीदा थी अब उचक गई तो हर लूंगी प्राण प्रिये !

जबरन बिठा थी जिसको चिता पे, वो सती नहीं निष्ठुरता थी 
रीति रिवाज़ के आड़ में सर्वस्व भोगी मानव की कायरता थी,
मुझको ना समझना नारी तुम, नौ दुर्गा सा सिंह पे सवार फिरू
अब पुजोगे तब मैं देवी हूं,जो सनक गई  तो सिर्फ़ संघार करूं!

तुम चाह सिंहासन की बेशक रख लो,पर मूझको ना दासी बतलाना 
मैं चाह क़लम की रखती हूं,मुझसे सिर्फ़ झाड़ू बर्तन ना करवाना
मैं चपल वाण सी चंचल नारी,जो जगत में धरती का श्रृंगार करुं
शांत रह गई जो सतयुग था,कलियुग में कल्पना सा ललकार करूं!!
 -रंजन

©रंजन

#मैं_नारी_कलियुग_की तुम क्या तोडोगे जान मुझे मै ख़ुद एक टूटा तारा हूं तुम क्या लूटोगे चैन मेरा मैं ख़ुद बेचैन आवारा हूं, चाहो तो कर लो प्रयास व्यर्थ, मैं अपने हृदय में प्यारी हूं मैं खुद से टूटी मैं ख़ुद में जुड़ी मैं अपनी राज दुलारी हूं! तुम क्या छिनोगे सम्मान मेरा मैं खुद सम्मान गवांई हूं अपने अधरो को सील लो तुम,मैं अब खंजर वाली नारी हूं, तुम आंख दिखा कर रावण सा मुझको ना उकसाना अब मैं धधक गई तब सीता थी, अब भड़क गई तो काली हूं! तुम राग बिलाप क्यों करते हो मैं अपने कर्मों की भागी हूं तुम ताज़ पहन कर बैठो हो तो मैं शीश मुकुट पे नागिन हूं, मुझे बेड़ियों में जकड़ने की एक और भूल ना करना तुम संभल गई जो कुल बधू थी,बहक गई तो झांसी वाली रानी हूं! तुम ना सिखलना प्रेम मुझे,मैं प्रेम कला में अति माहिर हूं अब ना छल पाओगे जिस्म मेरा,मैं वो रूह दफ़न कर आई हूं, आधी नंगी तस्वीरों को सामूहिक करने की धमकी ना देना अब कुम्हला गई जो अबला थी,अब डस लुंगी तुम्हें वो विष कन्या हूं ! मुख़ पे अर्धांगिनी तुम कहते हो,मन में झाड़ू-बर्तन करने वाली हो फ़ैसला करने का अधिकार नहीं, बस मशीन वंश चलाने वाली हो सड़कों पे झुमों नाले में गिरो फ़िर घर में गाली की बौछार करो, मैं तनिक झुंझला भी जाऊं तो मेरे ही चरित्र पे हज़ार सवाल करो! अब गलती से भी मुख ना लगना तुम, मैं बहुत रह ली मौन प्रिये, तुम गौशाला में टिको तनिक,मैं भी मधुशाला का चखुं शौक़ प्रिये एक ज़रा तनिक जो विचले तुम मैं फ़िर से ना सहन कर पाऊंगी सुबक गई जो संजीदा थी अब उचक गई तो हर लूंगी प्राण प्रिये ! जबरन बिठा थी जिसको चिता पे, वो सती नहीं निष्ठुरता थी रीति रिवाज़ के आड़ में सर्वस्व भोगी मानव की कायरता थी, मुझको ना समझना नारी तुम, नौ दुर्गा सा सिंह पे सवार फिरू अब पुजोगे तब मैं देवी हूं,जो सनक गई  तो सिर्फ़ संघार करूं! तुम चाह सिंहासन की बेशक रख लो,पर मूझको ना दासी बतलाना मैं चाह क़लम की रखती हूं,मुझसे सिर्फ़ झाड़ू बर्तन ना करवाना मैं चपल वाण सी चंचल नारी,जो जगत में धरती का श्रृंगार करुं शांत रह गई जो सतयुग था,कलियुग में कल्पना सा ललकार करूं!! -रंजन ©रंजन

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