अर्चना
तुझे ढूंँढते-ढूंँढते कहांँ से कहांँ आ गए हम
कब से चलते-चलते पैदल, अब तुम्हारे घर के करीब आ गए हम
गलियों की खाक छानी मैंने कब से
अब बेसब्री से पहाड़ों की कंन्द्राओं में कब से तुझे ढूंँढ रहे हैं
एक बार मुझको आवाज देकर तो देखो
तुम्हारे घर के सामने ही मैं तेरा इंतजार करता मिलूँगा
यदि विश्वास ना हो मुझ पर
तो एकबार खिड़की से पर्दा हटा कर तो देखो
माना कि वर्षों बीत गए
फिर भी तुझे मैं दिल से नहीं भुला पाया हूंँ
आया था सरस्वती की खोज में मैं
किस्मत की बात है कि मैं यहीं से लक्ष्मी ले गया
©DR. LAVKESH GANDHI
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#merikismat#