White जब कभी कुछ कह नहीं पाता
उसे लिख देता हूं
जब बेचैनियां बातों से आंखों से बह नही जाता
जो रह जाता है लिख देता हूं
भागती दुनिया में कभी लगता है पहाड़ या पेड़ हो गया हूं
अपनी जड़ता लिख देता हूं
या फिर कभी लगता है नदी या हवा सा बह रहा हु
तो उस बहाव को अपने लिख देता हू
जब अंदर और बाहर सिर्फ खामोशी हो
तो उस खामोशी के शून्य को लिख देता हूं
जब खोने पाने की बीच कही उलझा होता हूं
तो उलझन को कही लिख देता हूं
खुद से खुद को समझता रहूं समझता रहूं
इसलिए। सब कुछ लिख देता हूं ।।
©मिहिर
लिख देता हूं